शीतयुद्ध का दौर एवं गुटनिरपेक्ष आंदोलन
दो-ध्रुवीय विश्व का आरंभ
★शीतयुद्ध के दौरान दुनिया दो गुटों में बँट गई।
★ पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमरीका का साथ दिया। इस खेमे को पश्चिमी गठबंधन कहते हैं।
★ पूर्वी यूरोप के देशों ने सोवियत संघ का पक्ष लिया इसलिए इसे पूर्वी गठबंधन के नाम से जाना जाता है।
★ पश्चिमी गठबंधन/सैन्य संगठन – NATO (1949) - अप्रैल 1949 मे नाटो (उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन) जिसका उद्देश्य अमेरिका द्वारा लोकतंत्र को बचाना। इसमें 12 देश शामिल थे।
★ SEATO (1954) सीटों (दक्षिण पूर्व एशियाई सन्धि संगठन) का उद्देश्य अमेरिका के नेतृत्व वाले साम्यवादी प्रसार को रोकना।
★ CENTO (1955) 1955 में बगदाद पैक्ट।
★ पूर्वी गठबंधन/सैन्य संगठन - वारसा संधि (1955)
★ परिणामतः विश्व खुले तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर दो ध्रुवों में बैठ चुका था।
★ साम्यवादी और पूंजीवादी विचारधारा में अंतर-
★ महाशक्तियों को छोटे देशों से लाभ-
(a) छोटे देशों के प्राकृतिक संसाधन जैसे तेल और खनिज प्राप्त करना।
(b) सैन्य ठिकाने स्थापित करना।
(c) आर्थिक सहायता प्राप्त करना।
(d) क्षेत्र प्राप्त करना।
क्यूबा मिलाइन संकट 1962
★ क्यूबा, अमरीका के तट से लगा एक छोटा-सा द्वीपीय देश है और इसकी (क्यूबा) दोस्ती सोवियत संघ से थी।
★ सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव क्यूबा को अपना सैनिक अड्डा बनाना चाहते थे।
★ 1962 में खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइले तैनात की ताकि वह अमेरिका पर हमला बोल सके।
★ अमेरिका को इस घटना का पता 21 दिन (3 हफ्ते) बाद लगा।
★ अमरीकी राष्ट्रपति केनेडी ने आदेश दिया कि यदि मिसाइलों को जल्दी नहीं हटायी गई तो इसका परिणाम सबको भुगतना पड़ेगा।
★ दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का फैसला किया और दुनिया ने चैन की सांस ली।
★ क्यूबा मिलाइन संकट को शीतयुद्ध का चरम बिंदु कहा जाता है।
★ क्यूबा मिलाइन से सम्बंधित प्रमुख नेता-
(a) निकिता खुश्चेव [सोवियत संघ (USSR)]
(b) जे.फ. केनेडी [अमेरिका (USA)]
(c) फिदेल कास्त्रे [क्यूबा]
★ शीतयुद्ध के दायरे अर्थात् विवादित क्षेत्र-
1. बार्लेन की नाके बन्दी 1948
2. कोरिया संकट 1950
3. वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप 1954
★ अन्य विवादित क्षेत्र-
4. क्यूबा संकट 1962
5. भारत पाकिस्तान युद्ध 197
★ अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप 1979
★ कांगों संकट 1960 के शुरूआती दशक में
गुटनिरपेक्ष आंदोलन/दो ध्रुवीयता को चुनौती
★ 1961 में युगोस्लाविया के बेलग्रेड में 25 सदस्य राष्ट्रों ने भारत के जवाहर लाल नेहरू, मिन के अब्दुल गमाल नासिर, युगोस्लाविया के टीटो इन्डोनेशिया के सुकर्णो, छाना के वामें एनक्रूम के नेतृत्व मे एक संगठन की स्थापना की गई।
★ वे देश जो साम्यवादी और पूंजीवादी दोनों गुटों में शामिल नहीं हुए वे गुटनिरपेक्ष देश कहलाए।
गुटनिरपेक्षता जहाँ दो-ध्रुवीयता के लिए चुनौती बन कर आया वहीं दूसरी तरफ नव स्वतंत्र राष्ट्रों के लिये विकास की किरण।
★ गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने दोनों राष्ट्रों सोवियत संघ (USSR), अमेरिका (USA) के दबदबे को चुनौती दी और 'नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया।
★ दोनों गुटों से सम्बन्धित राष्ट्रों के बीच विवादों को गुटनिरपेक्ष देशों द्वारा सुलझाया गया।
★ गुटनिरपेक्ष देशों के अंतर्गत एशिया अफ्रीका और लातिन अमरीका के देश शामिल थे, जो दोनों महाशक्तियों के गुटों से स्वयं को बचाए रखना चाहते थे।
★ पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ।
★ नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था : 1972 में गुटनिरपेक्ष देशों ने संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास से सम्बन्धित सम्मेलन (UNCTAD) में विकास के लिए एक नई व्यापार नीति की ओर एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिससे विकसित देशों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा गरीब देशों का आर्थिक शोषण न हो सके। वे अपने संसाधनों का स्वयं अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकें।
★ गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य-
1. अपनी मुक्त व स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना।
2. गठबंधनों से दूर रहना।
★ वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की संख्या इस प्रकार है-
1. अफ्रीका - 53 सदस्य राष्ट्र,
2. एशिया -36 राष्ट्र,
3. अमेरिका - 26,
4. यूरोप के - 2,
5. ओशियाना के 3 तथा पूर्व सदस्य राष्ट्र 4 (अर्जेन्टीना, यूगोस्लविया, साइप्रस एवं माल्टा)।
★ पर्यवेक्षकों की संख्या -17 है।
★ गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता-
(a) विश्व जब दो गुटों में बट गया था तब गुटबाजी को चुनौती देने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन शुरू किया गया था।
(b) लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का महत्व कम हो गया पर यह पूरी रूप से अप्रासंगिक नहीं हुभा है क्योंकि-
(1) यह उन राष्ट्रों का आंदोलन है जिनका गुलामी का इतिहास रहा है।
(ii) एक ध्रुवीय व्यवस्था में अमरीका के प्रभुत्व से बचने के लिए इन छोटे देशों का आपसी सहयोग जरूरी है।
(ii) गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने विश्व शांति की दिशा में कदम उठाए हैं जिसकी आज आवश्यकता है।
(iv) गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अधिकतर देश विकासशील या अविकसित है। इन देशों की उन्नति आपसी सहयोग से ही हो सकती है।
★ भारत व शीतयुद्ध : गुटनिरपेक्षता की नीति कोई पलायन की नीति नहीं थी। शीतयुद्ध के दौरान भारत में नव स्वतंत्र तथा सोवियत संघ के साथ सम्बन्ध तय करते समय राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की कोशिश की।
★ शस्त्र नियन्त्रण सधि:
(i) 5-10-1963 में एल.टी.बी.टी. (सीमित परमाणु परीक्षण सधि/LTBT limited Test Ban Treaty) वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा जल के अन्दर परमाणु के परीक्षण पर पाबंदी। ।
(ii) 01-07-1968 एन.पी.टी. (परमाणु अप्रसार संधि N.P.T Non Proliteration Treaty) जनवरी 1967 से पूर्ण परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के अलावा कोई अन्य राष्ट्र परमाणु हथियार हासिल नहीं करेगा।
(iii) 1-5-1972 में सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-1।
(v) जून 1972 में सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-2 (SALT- StrategicArms Limitation Talk 1-2)।
(vi) 1-7-91 में सामरिक अस्त्र परिसीमन न्यूनीकरण संधि-1।
(vii) जनवरी 1993 में सामरिक अस्त्र परिसीमन न्यूनीकरण संधि 2/(START-StrategicArms Reduction Treatry 1-2)।
★ विस्तृत रूप :
(1) उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organisation - NATO)
(ii) केंद्रीय संधि संगठन (Central Treaty Organisation- CENTO)
(ii) दक्षिण पूर्व एशियाई सधि संगठन (South EastAsian Treaty Organisation - SEATO)
(iv) गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement - NAM)
(v) सीमित परमाणु परीक्षण संधि (Limited Test Ban Treaty - LTBT)
(vi) परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treat-NPT)
(vii) सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता (StrategicArms Limitation Talk-SALT)
(viii) सामरिक अस्त्र परिसीमन न्यूनीकरण संधि (Strategic Arms Reduction Treaty - START)
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