प्रारंभिक समष्टि-अर्थशास्त्र
अध्याय : 1- समष्टि-अर्थशास्त्र की कुछ मूल अवधारणाएँ
👉वस्तुएं विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत की जाती है जो कि उनकी सामान्य विशेषताओं या उनके अंतिम उपयोग पर निर्भर करता है |वस्तुओं को दो प्रकार में वर्गीकरण किया गया है:-
(i) पभोग वस्तुएं तथा पूंजीगत वस्तुएं
(ii) अंतिम वस्तुएं की तथा मध्यवर्ती वस्तु
(i) उपभोग वस्तुएं या उपभोक्ता वस्तु : वह वस्तु जो मानवीय आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती है तथा इनका प्रयोग अन्य वस्तु के उत्पादन के लिए नहीं किया जाता है उसे उपभोग वस्तु या उपभोक्ता वस्तु कहा जाता है।
★उपभोग वस्तु को ही अंतिम वस्तु भी कहा जाता है।
उदाहरण : परिवार द्वारा उपभोग किया गया दूध तथा आइसक्रीम।
👉उपभोक्ता या उपभोग वस्तु को चार श्रेणियों में बांटा गया है :-
(i) टिकाऊ वस्तु
(ii) अर्ध टिकाऊ वस्तु
(iii) गैर टिकाऊ वस्तु
(iv) अभौतिक वस्तु या सेवाएं
(i) टिकाऊ वस्तु : वह वस्तु जिनका उपयोग उपयोग कई वर्ष तक किया जाता है तथा जिसका मूल्य अधिक होता है उसे टिकाऊ वस्तु कहते है।
★इन वस्तुओं को अंत तक बार-बार उपयोग किया जाता है।
उदाहरण : टीवी , कार आदि।
(ii) अर्ध टिकाऊ वस्तु : वह वस्तु जिनका उपयोग 1 वर्ष या उससे अधिक समय के लिए किया जाता है अर्ध टिकाऊ वस्तु कहते हैं।
★इन वस्तुओं की अधिक मूल्य नहीं होती है।
उदाहरण : बिजली का सामान , कपड़े आदि।
(iii) गैर टिकाऊ वस्तु : वह वस्तु जिनका उपयोग एक ही बार किया जाता है उसे गैर टिकाऊ वस्तु कहते हैं।
★इन वस्तुओं का सापेक्ष मूल्य कम होता है।
उदाहरण : डबल रोटी , एलपीजी गैस , दूध आदि।
(iv) अभौतिक वस्तु या सेवाएं : वे वस्तुएं जो मानवीय आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करता है उसे अभौतिक वस्तु या सेवाएं कहते हैं।
उदाहरण : डॉक्टर , पुलिस , टीचर आदि।
👉पूंजीगत वस्तुएं : वे वस्तुएं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है और जिनका मूल्य बहुत अधिक होता है उसे पूंजीगत वस्तुएं कहते हैं।
★(i) यह उत्पादक की स्थिर परिसंपत्ति होती है।
★(ii) इन वस्तुओं का प्रयोग करने से इनका मूल्य ह्रास होता है।
★(iii) इन वस्तुओं का उत्पादन प्रक्रिया में बार-बार कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण : प्लॉट तथा मशीनरी पूंजीगत वस्तुएं हैं तथा नट , बोल्ट , कील तथा पेच को कई वर्ष तक प्रयोग में लाया जाता है तथा यह वस्तुएं पूंजीगत वस्तु नहीं होती क्योंकि इन वस्तुओं का मूल्य कम होता है।
★सभी पूंजीगत वस्तु उत्पादक वस्तु होती है किंतु सभी उत्पादक वस्तु पूंजीगत वस्तु नहीं होती है।
✍️सभी मशीनें पूंजीगत वस्तु नहीं होती क्यों ?
(i) वह मशीनें जो एक उपभोक्ता परिवार के घर में होता है तथा उनका प्रयोग घर के लोग करते हैं वह पूंजीगत मशीनें या पूंजीगत वस्तु नहीं होती तथा यह उपभोग वस्तु के रूप में होता है।
उदाहरण: (i) दर्जी की दुकान में रखी एक सिलाई मशीन दर्जी की है स्थिर परिसंपत्ति है अतः यह एक पूंजीगत वस्तु है। (ii) प्पर्यटक कंपनी की कार पूंजीगत वस्तु है किंतु वही कार एक उपभोक्ता परिवार के पास है तो वह एक टिकाऊ उपभोग वस्तु है।
(iii) केवल वही वस्तु टिकाऊ वस्तु या पूंजीगत वस्तु होती है जिन का उत्पादन वस्तुओं के रूप में प्रयोग होता है ना कि उपभोक्ता के रूप में
👉मूल्य ह्रास : पूंजीगत वस्तु में मूल्य ह्रास यह अभिप्राय है की वस्तु टूटने फूटने के कारण हानि होती है।
(i) उत्पादक वस्तुएं उन सभी वस्तुओं को कहते हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तु के उत्पादन के लिए किया जाता है वह वस्तु जिन का उत्पादन कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं।
उदाहरण: फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग तथा स्थिर परिसंपत्तियों के रूप में प्लॉट तथा मशीनरी।
✍️सभी उत्पादक वस्तु पूंजीगत वस्तु नहीं होती है क्यों ?
पूंजीगत वस्तुओं में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों को ही सम्मिलित किया जाता है यह टिकाऊ उत्पादक वस्तु होती है दूसरी ओर कच्चे माल के रूप में की गई वस्तुओं एकल उपयोग उत्पादक वस्तु होती है यह उत्पादन की प्रक्रिया मैं बार-बार प्रयोग नहीं होती है इसीलिए उत्पादक वस्तु पूंजीगत वस्तु नहीं होती है।
उपभोग वस्तुएं :-
(i) यह वस्तु मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रुप से संतुष्ट करती है।
(ii) इस वस्तुओं के अधिक उत्पादन के कारण लोगों को अधिक से अधिक कल्याण होता है और मानवीय जीवन के गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
(iii) इन वस्तुओं पर किए गए व्यय उपभोग व्यय कहलाता है।
पूंजीगत वस्तुएं :-
(i) यह वस्तु मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रुप से संतुष्ट नहीं करती है।
(ii) यह वस्तुएं उत्पादको द्वारा अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।
(iii) पूंजीगत वस्तुए के अधिक उत्पादन के कारण अर्थव्यवस्था मैं जीडीपी बढ़ जाती है।
(iv) पूंजीगत वस्तु पर किए गए व्यय निवेश कहते हैं।
👉अंतिम वस्तु : अंतिम वस्तु वे वस्तु है जो उत्पादन की सीमा रेखा पार कर चुकी है और अपने अंतिम प्रयोग कर्त्ताओ द्वारा उपयोग के लिए तैयार है यह प्रयोग क्रेता एक उत्पादक या उपभोग क्रेता हो सकता है।
👉अंतिम वस्तु को दो भागों में बांटा गया है :-
(i) अंतिम उपभोग वस्तु
(ii) अंतिम उत्पादक वस्तु
(i) अंतिम उपभोग वस्तु को अंतिम रूप से उपभोक्ताओं द्वारा अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए खरीदा जाता है।
(ii) अंतिम उत्पादक वस्तु को अंतिम रूप से उत्पाद द्वारा खरीदा जाता है और इसका प्रयोग स्थिर परिसंपत्तियों के रूप में किया जाता है।
👉उपभोग व्यय : अंतिम उपभोक्ता वस्तु पर किया जाने वाला व्यय को उपभोग व्यय कहा जाता है।
👉निवेश व्यय : अंतिम वस्तु पर उत्पादको द्वारा किए जाने वाले व्यय को निवेश व्यय कहा जाता है।
निवेश व्यय = उपभोग व्यय + उपभोग व्यय
✍️जब ऐसा कहते हैं कि अंतिम वस्तु में उत्पादन सीमा रेखा पार कर चुकी है इसका क्या अर्थ है?
(i) इसका अर्थ यह है कि वस्तु उत्पादन की प्रक्रिया तथा मूल्य विधि की प्रक्रिया को पार कर चुकी है।
(ii) जीडीपी का अनुमान लगाते समय केवल अंतिम वस्तुओं को ही सीमित किया जाता है।
👉मध्यवर्ती वस्तु : वह वस्तु जो उत्पादन की सीमा रेखा पार नहीं किया हो अथवा इन वस्तुओं में (i) मूल्य वृद्धि की जानी है और जो अभी अंतिम प्रयोग क्रेता के द्वारा प्रयोग के लिए तैयार नहीं है।
(ii) मध्यवर्ती वस्तु वह वस्तु होती है जिनमें एक फॉर्म द्वारा किसी अन्य फॉर्म के कच्चे माल के रूप में पुनः बिक्री के लिए खरीदा जाता है।
उदाहरण : कुर्सी बनाने के लिए बधाई द्वारा खरीदी गई लकड़ी का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
👉मध्यवर्ती लागत या मध्यवर्ती उपभोग : एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादकों द्वारा मध्यवर्ती वस्तु पर
किया गया व्यय मध्यवर्ती लागत या मध्यवर्ती उपभोक्ता कहलाता है।
✍️एक ही वस्तु अंतिम वस्तु अथवा मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है उदाहरण द्वारा समझाइए ?
एक ही वस्तु अंतिम वस्तु अथवा मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है यह अंतर वस्तु के अंतिम उपभोग पर निर्भर करता है
उदाहरण : (i) एक विद्यार्थी द्वारा खरीदा गया कागज अंतिम वस्तु है किंतु एक प्रकाशन द्वारा खरीदा गया कार्य मध्यवर्ती वस्तु है।
(ii) बिस्कुट के उत्पादन में चीनी कच्चे माल के रूप में मध्यवर्ती वस्तु है किंतु परिवार के सदस्य द्वारा चाय में प्रयोग किया की गई चीनी अंतिम वस्तु है।
👉मध्यवर्ती वस्तु तथा अंतिम में अंतर स्पष्ट कीजिए।
मध्यवर्ती वस्तु :-
(i) यह वस्तु उत्पादन सीमा रेखा के अंदर होती है तथा अंतिम प्रयोग क्रेता दारा उपयोग के लिए तैयार नहीं होती है।
(ii) लेखा वर्ष के दौरान इन वस्तुओं का उपयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में किया जाता है |(iii) लेखा वर्ष के दौरान धर्मशाला लाभ प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं की पुनः बिक्री की जाती है।
(iv) इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय के अनुमान में सम्मिलित नहीं किया जाता है।
अंतिम वस्तु :-
(i) यह वस्तु उत्पादन की सीमा रेखा के बाहर होती है तथा अंतिम प्रयोगक्रेता द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती है (ii) लेखा वर्ष के दौरान इन वस्तुओं का उपयोग अन्य वस्तु के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में नहीं किया जाता है।
(iii) लेखा वर्ष के दौरान फॉर्म द्वारा लाभ प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं की पुण्य बिक्री नहीं की जाती है।
(iv) इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय के अनुमान में सम्मिलित किया जाता है।
👉मध्यवर्ती वस्तु और अंतिम वस्तुओं भेद का अंतर :-मध्यवर्ती वस्तु तथा अंतिम वस्तु के बीच भेद महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह राष्ट्रीय आय के आकलन मैं दोहरी गिनती की समस्या से बचाता है यदि मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को राष्ट्रीय आय के आकलन में सम्मिलित करते हैं तो दोहरी गिनती की समस्या उत्पन्न होती है l
★राष्ट्रीय आय के आकलन में केवल अंतिम वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है।
👉उपभोग व्यय की अवधारणा तथा इसके घटक :-
अर्थव्यवस्था में समग्र उपभोग व्यय समष्टि अर्थशास्त्र में सम्मिलित है।
उपभोगता को 3 वर्गों में बांटा गया है :-
(i) परिवार
(ii) सरकार
(iii) निजी संस्थाएं (गैर सरकारी संस्थाएं एनजीओ मंदिर )
(i) परिवार: परिवार अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए उपभोगता वस्तुओं को खरीदता है।
(ii) सरकार: सरकार उपभोगता वस्तु की खरीद सुरक्षा बलो तथा सरकारी स्कूलों मैं दोपहर का भोजन को वितरण करने तथा ऐसे कई उद्देश के लिए करती है।
(iii) निजी संस्थाएं: गैर लाभ निजी संस्थाएं यह संस्थाएं दान हेतु या दान के लिए उपभोक्ता वस्तु खरीदना है l
👉समग्र उपभोग व्यय = परिवार उपभोग व्यय +सरकार उपभोग व्यय + गैर लाभ निजी संस्थाएं व्यय
👉निवेश की अवधारणा तथा घटक वह प्रक्रिया जिसमें पूंजी का निर्माण तथा पूंजी के स्टॉक में वृद्धि की जाती है उसे निवेश कहते हैं l
I = ΔK
I = निवेश
K = पूंजी में स्टॉक
Δ = पूंजी के स्टॉक में परिवर्तन
★पूंजी के स्टॉक में परिवर्तन को पूंजी निर्माण भी कहा जाता है l
👉निवेश को दो भागों में बांटा गया है
(i) स्थिर निवेश
(ii) माल सूची निवेश
(i) स्थिर निवेश : उत्पादकों द्वारा स्थित परिसंपत्तियों अथवा पूंजीगत वस्तुओं की खरीद पर किया व्यय स्थिर निवेश कहलाता है l
(ii) माल सूची निवेश : समय के साथ साथ माल सूची स्टॉक में होने वाली परिवर्तन उत्पादक का माल सूची निवेश कहा जाता है l
स्थिर निवेश + माल सूची निवेश का उदाहरण :-(i) यदि वर्ष 2020 के आरंभ में उत्पादक के स्टॉक में 8 मशीन होती है तथा वर्ष 2020 के अंत में उसके पास 12 मशीन हो जाती है तो वर्ष 2020 के दौरान स्टॉक में चार मशीन की वृद्धि हो जाती है l
👉स्थिर निवेश का महत्व :-
(i) इसे उत्पादकों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है और इससे निवेश के कारण अर्थशास्त्र में ऊंचे स्तर पर उत्पादन होता है l
(ii) उत्पादन के उच्च स्तर के कारण जीडीपी समृद्धि की दर अधिक बढ़ जाती है l
👉माल सूची निवेश का महत्व :-
(i) यह उत्पादन की प्रक्रिया में आगत की निरंतर पूर्ति अनुसूचित करता है l
(ii) कच्चे माल को प्रचुर मात्रा में स्टॉक होने पर उत्पादन बाजार से प्रतिदिन होने वाली खरीद से बच सकता है l
उदाहरण : उत्पादक को आशा थी कि 1000 पंखे बेच सकेगा परंतु मांग के अभाव के कारण 500 पंखे बेच पाता है इस स्थिति में 500 पंखे को अनचाहा माल सूची स्टॉक कहां जाएगा l
👉वांछित माल सूची स्टॉक : यह नियोजित मॉल सूची स्टॉक को प्रकट करता है जिसमें उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तु की भावी माल का लाभ उठाने की दृष्टि सम्मिलित है l
👉अवांछित माल सूची स्टॉक : यदि अनियोजित माल सूची स्टॉक को प्रकट करता है यह अपेक्षित माल की तुलना में वस्तु की मांग की तुलना में वस्तु की मांग कम होने के कारण उत्पन्न होती है इसीलिए अनियोजित मॉल सूची स्टॉक के कारण हानि होती है l
👉सकल निवेश , शुद्ध निवेश तथा मूल्यह्रास की अवधारणा :-
सकल निवेश : लेखा वर्ष के दौरान स्थिर परिसंपत्तियों को खरीदने के साथ-साथ माल सूची स्टॉक पर किया गया खर्च सकल निवेश कहलाता है l
शुद्ध निवेश : उत्पादक द्वारा नई परिसंपत्तियों की खरीद पर किया गया है व्यय शुद्ध निवेश कहलाता है l
(i)शुद्ध निवेश उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है रोजगार के अवसर श्रीजीत करता है |(ii)श्रम की कुशलता को प्रोत्साहित करता है तथा जीडीपी समृद्धि कि दर को तीव्र करता है l
(iii)शुद्ध निवेश के इन महत्व के कारण ही भारत ने आयोजक तथा राजनीतिक F.D.I ( विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ) को आकर्षित जटिल प्रयास कर रहा है l
👉मूल्यह्रास : यह सकल निवेश का एक भाग है जिसमें केवल घिसी-पीटी परिसंपत्तियों को पूर्ण स्थापन किया जाता है l
(i)स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में कमी हो जाती है जब सामान्य टूट-फूट तथा आस्मिक हानि होता है l
(ii)मूल्यह्रास को स्थिर पूंजी का उपभोग भी कहा जाता है l
(iii)मूल्यह्रास के कारण समय-समय पर स्थिर परिसंपत्तियों को पुनः स्थापन जरूरी हो जाती है l
सकल निवेश = शुद्ध निवेश + मूल्यह्रास
👉प्रत्याशित अप्रचलन : प्रत्याशित अप्रचलन से प्रोधोगिकी \ तकनीक में परिवर्तन के कारण स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य के होने वाले गिरावट से संबंधित है l
👉प्रत्याशित अप्रचलन के दो घटक है :-
(i) प्रोधोगिकी में परिवर्तन
(ii) मांग में परिवर्तन
(i) प्रोधोगिकी में परिवर्तन ( तकनीक में परिवर्तन ) इसके कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का अप्रचलन हो जाता है तब इनके मूल्य में हानि होती है l
उदाहरण : काला और सफेद टीवी बनाने वाला पोल्ट तब अप्रचलित हो जाता है जब रगिन टीवी बनाने वाला तकनीक का सफल खोज हो जाता है l
(ii) मांग में परिवर्तन : इसके कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का अप्रचलन हो जाता है तभी उनके मूल्य में हानि होती है l
उदाहरण : रबड़ के जूते बनाने वाला प्लॉट तब अप्रचलित हो जाता है जब रबड़ के जूते के स्थान पर चमड़े के जूते के मांग हो जाती है l
👉अप्रत्याशीत अप्रचलन : अप्रत्याशीत अप्रचलन से अभिप्राय प्राकृतिक आपदाओं तथा आर्थिक मंदी के कारण परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली गिरावट से है l
(i) यह पूंजीगत हानि को प्रकट करता है l
(ii) अप्रत्याशित अप्रचलन को स्थिर परिसंपत्तियों के बीमा द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
👉मूल्यह्रास के अनुमान के लिए केवल प्रत्याशित अप्रचलन को ध्यान में रखा जाता है ना की अप्रत्याशित अप्रचलन को l
👉स्थिर पूँजी का उपभोग : उत्पादन प्रक्रिया में निरंतर प्रयोग होने के कारण स्थिर परिसंपत्तियों (पूँजीगत वस्तुओं) के मूल्य में होने वाली कमी को स्थिर पूंजी का उपयोग कहते हैं l
(i) इस हानि के कारण हैं: (a) सामान्य दूट-फूट, (b) आकस्मिक हानि (c) अप्रत्याशित अप्रचलन।
(ii) इसे मूल्यह्रास आरक्षित कोष द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
👉पूँजीगत हानि : पूँजीगत हानि से अभिप्राय स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली कमी से है जब वह प्रयोग नहीं की जाती है।
(i) इस हानि के कारण (a) प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़,आग, आदि) , (b) आर्थिक मंदी की अवधि के दौरान परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य में गिरावट
(ii) इसे स्थिर परिसंपत्तियों के बीमा द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
👉स्टॉक तथा प्रवाह
स्टॉक : स्टॉक वह मात्र है जो समय के निश्चित बिंदु पर मापी जाती है l
उदाहरण : 15 जुलाई 2021 को अपने बैंक खाते में ₹2000 हो सकता है 25 जुलाई 2021 के खाते में ₹4000 हो सकते हैं यह सभी मूल्य स्टॉक है क्योंकि समय विशेष बिंदु पर मा पा जाता है l
(i) संपत्ति ,(ii) पूंजी,(iii) बैंक जमा,(iv) देश में मुद्रा की पूर्ति,(v) छत की टंकी में पानी,(vi) मुंबई से दिल्ली के बीच की दूरी l
प्रवाह : वह मात्रा जो समय की एक विशेष अवधि में मापी जाती है l
उदाहरण : यदि आप ₹300 प्रति माह जेब खर्च प्राप्त करते हैं जिसमें आप प्रतिदिन कैंटीन में ₹30 खर्च करते हैं यदि आप अपने बैंक में जमा कर 10 परसेंट वार्षिक ब्याज प्राप्त करते हैं तो यह सही मूल्य प्रवाह है क्योंकि इन्हें प्रति इकाई समय अवधि पर मापी जाती है |
(i) पूंजी निर्माण,(ii)आय,(iii) बैंक जमा,(iv) देश में मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन पूंजी पर ब्याज
👉अर्थव्यवस्था के क्षेत्र :-
समष्टि अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से चार क्षेत्रों में बांटा गया है l
(i) परिवार क्षेत्र
(ii) उत्पादक क्षेत्र
(iii) सरकारी क्षेत्र
(iv) विदेशी क्षेत्र
(i) परिवार क्षेत्र : परिवार क्षेत्र में वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोक्ताओं को सीमित किया जाता है l
(ii) उत्पादक क्षेत्र : उत्पादक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सभी उत्पादन करने वाली इकाई सीमित होती है l
(iii) सरकारी क्षेत्र : सरकारी क्षेत्र में कल्याणकारी एजेंसी के रूप में उत्पादक के रूप में सरकार सम्मिलित होती है जो कानून तथा सुरक्षा जैसे कल्याणकारी कार्य करते हैं l
(iv) विदेशी क्षेत्र :विदेशी क्षेत्र मैं वस्तुओं के निर्यात एवं आया तथा घरेलू अर्थव्यवस्था एवं शेष विदेशों के बीच पूंजी के प्रवाह प्रकट करता है l
👉अंतक्षेत्रीय प्रवाह : अर्थशास्त्र का सभी क्षेत्र एक दूसरे पर निर्भर करता है उसे अंतक्षेत्रीय प्रवाह कहते हैं
(i) परिवार क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं की पूर्ति के लिए उत्पादक क्षेत्र पर निर्भर करता है, जो उनके उपभोग के लिए आवश्यक होता है l
(ii) उत्पादक क्षेत्र उत्पादन के कारकों तथा सेवाओं की पूर्ति के लिए परिवार क्षेत्र पर निर्भर करता है, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक होता है l
(iii) सरकारी क्षेत्र अपनी कर तथा करेतर प्राप्तियों के लिए उत्पादक तथा परिवार क्षेत्र पर निर्भर करता है।
(iv) उत्पादक तथा परिवार क्षेत्र प्रशासकीय सेवाओं कानून एवं व्यवस्था तथा सुरक्षा के लिए सरकार पर निर्भर करते हैं।
👉वास्तविक प्रवाह तथा मौद्रिक प्रवाह
वास्तविक प्रवाह : वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह से है। परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर कारक सेवाओं के प्रवाह अथवा उत्पादक क्षेत्र से परिवार क्षेत्र की ओर वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह वास्तविक प्रवाह हैं l
(i) वस्तु एवं सेवाओं के प्रवाह को वास्तविक प्रवाह कहते हैं l
(ii) वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तु का सेवाओं का प्रवाह से है l
मौद्रिक प्रवाह : मौद्रिक प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा के प्रवाह से है। उत्पादक क्षेत्र से परिवार क्षेत्र की ओर कारक भुगतानों के प्रवाह (कारक सेवाओं की खरीद के कारण) तथा परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर मुद्रा के प्रवाह (वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद के कारण) मौद्रिक प्रवाह हैं।
(i) मौद्रिक प्रवाह वास्तविक प्रवाह के व्युत्क्रम होता है l
(ii) मुद्रा के प्रवाह को मौद्रिक प्रवाह करते हैं l
👉मुद्रा का चक्रीय प्रवाह : वह निरंतर प्रक्रिया जिसमें उत्पादन से परिवार की ओर मुद्रा का प्रभाव |इसी प्रकार से उत्पादको की ओर मुद्रा का प्रवाह चक्रीय प्रवाह कहलाता है l
आय का चक्रीय प्रवाह कभी नहीं रूकती क्योंकि उत्पादको द्वारा की गई कारक सेवाओं की मांग कभी नहीं रूकती तथा उपभोक्ताओं द्वारा उपभोक्त वस्तुएं एवं सेवाओं की ओर माँग कभी नहीं रूकती है l
👉 चक्रीय प्रवाह का महत्व :-
(i) राष्ट्रीय आय का अनुमान : चक्रीय प्रवाह राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने में सहायक होता है
👉राष्ट्रीय आय क्या है ?
राष्ट्रीय आय = लगान + लाभ + मजदुरी + ब्याज
(ii) अंतक्षेत्रीय अंतर्निर्भरता का ज्ञान : अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को समझने तथा परस्पर निर्माता को समझने मैं चक्रीय प्रवाह सहायक होता है l
★मुद्रा के चक्रीय प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह भी कहा
- अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय तथा संबंधित समुच्चय बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय के आकलन की विधियाँ बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 4 मुद्रा [Money] बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 5 बैंकिंग [Banking] बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 6 समग्र माँग एवं इसके घटक बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 7 अल्पकालीन संतुलन उत्पादन बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 8 न्यून (अभावी) माँग और अधि माँग की समस्या बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 9 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 10 विदेशी विनिमय दर बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 11 भुगतान शेष बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 1 स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 2 भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 3 कृषि, उद्योग तथा व्यापार [1950-1990] बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 4 1991 से आर्थिक सुधार: नई आर्थिक नीति बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 5 निर्धनता बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 6 भारत में मानव पूँजी निर्माण बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 7 ग्रामीण विकास बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 8 रोजगार बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 9 आधारिक संरचना बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 10 पर्यावरण एवं सतत (स्थायी) विकास बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 11 भारत और इसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 6 समग्र माँग एवं इसके घटक बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
- अध्याय - 7 अल्पकालीन संतुलन उत्पादन बहुवैकल्पिक प्रश्न और उत्तर
0 टिप्पणियाँ